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नज़्म
जिन्हें मुतरिबों ने चाहा कि सदाओं में पिरो लें
जिन्हें शाइ'रों ने चाहा कि ख़याल में समो लें
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मक़बरों की शान हैरत-आफ़रीं है इस क़दर
जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ से है चश्म-ए-तमाशा को हज़र
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मोहब्बतें उस के नाम से हैं
मोहब्बतों के सभी घरानों की निस्बतें उस के नाम से हैं
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
चलो कि चल के चराग़ाँ करें दयार-ए-हबीब
हैं इंतिज़ार में अगली मोहब्बतों के मज़ार