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नज़्म
मुतमइन है तू परेशाँ मिस्ल-ए-बू रहता हूँ मैं
ज़ख़्मी-ए-शमशीर-ए-ज़ौक़-ए-जुस्तुजू रहता हूँ मैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
न जाने कितने बरस परेशान धूल की तरह से जमे थे
जिन्हें रिफ़ाक़त समझ के हम दोनों मुतमइन थे
बशर नवाज़
नज़्म
मगर कोई मुसलसल दिल पे इक दस्तक दिए जाता था कहता था मुसाफ़िर!
इस क़दर ना-मुतमइन रहने से क्या होगा
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
जमील मज़हरी
नज़्म
ख़िज़ाँ रहे या बहार आए तुम्हारे हाथों में फ़ैसला है
न चैन बे-ताब बिजलियों को न मुतमइन कारवान-ए-शबनम
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
मुल्क मिटने को है पैग़ाम-ए-बक़ा दे दो उसे
मुतमइन बैठे हो दिल सीने में घबराता नहीं