aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "معدود"
हम से पहले था अजब तेरे जहाँ का मंज़रकहीं मस्जूद थे पत्थर कहीं मा'बूद शजर
हम अहल-ए-सफ़ा मरदूद-ए-हरममसनद पे बिठाए जाएँगे
वो कौन सा आदम है कि तू जिस का है मा'बूदवो आदम-ए-ख़ाकी कि जो है ज़ेर-ए-समावात
पतियाँ खड़कीं तो समझा कि लो आप आ ही गएसज्दे मसरूर कि मा'बूद को हम पा ही गए
वो मर्द-ए-ख़ुदा हम में नई रूह तो भर देवो रूह कि मौजूद न मा'दूम से निकले
जो ज़ीस्त की बे-हूदा कशाकश से भी होते नहीं मादूमख़ुद ज़ीस्त का मफ़्हूम!
माबूद इस आख़िरी सफ़र मेंतन्हाई को सुर्ख़-रू ही रखना
माह ओ अंजुम भी हुए जाते हैं मजबूर-ए-सुजूदवाह आराम-गह-ए-मलिका-ए-माबूद-मिज़ाज
और रिश्तों से अलग भी है मिरी इक हस्तीजो फ़क़त घर में ही महदूद नहीं रह सकती
सालियाँ कहने लगीं क़ुर्ब-ओ-क़रीं है कोईसाले ये बोले कि मरदूद-ओ-लईं है कोई
आरज़ू है मुझ से हो अब हम-कलामराहतें मादूम हैं मेरे तख़य्युल से तमाम
नज़र से मादूम हो रही हैंमिरी गली के ग़लीज़ बच्चो
हट सामने से दूर होमरदूद हो मक़हूर हो
ख़ुर्म-ओ-शाद सर-ए-राह उसे जाते हुएसालहा-साल से मसदूद था याराना मेरा
اضطراب دل کا ساماں ياں کي ہست و بود ہے علم انساں اس ولايت ميں بھي کيا محدود ہے؟
मैं जिंसी खेल को सिर्फ़ इक तन-आसानी समझता हूँज़रीया और है मा'बूद से मिलने का दुनिया में
شيدائي غائب نہ رہ، ديوانہء موجود ہو غالب ہے اب اقوام پر معبود حاضر کا اثر
ये फ़रियाद-ए-ख़ामोश नीची निगाहेंये अरमाँ कि मसदूद हैं जिन की राहें
हर एक मंज़र मिरे तसव्वुर में बस गया हैमैं ज़ात-ए-महदूद अपनी पहनाइयों में
मलाल ऐसा भी क्या जो ज़ेहन को हर ख़्वाब से महरूम कर देजमाल-ए-बाग़-ए-आइंदा के हर इम्कान को मादूम कर दे
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