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नज़्म
गर ये सच है तो तिरे अद्ल से इंकार करूँ?
उन की मानूँ कि तिरी ज़ात का इक़रार करूँ?
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मगर मेरी निगाहों में हैं चेहरे उन जवानों के
जिन्हें 'इक़बाल' ने बख़्शे हैं बाज़ू क़हर-मानों के
हफ़ीज़ जालंधरी
नज़्म
हाँ उसी ख़ुश-वक़्त ख़ाक-ए-पाक के बेटे हो तुम
में न मानूँगा कि अक़्ल-ओ-फ़हम के हेटे हो तुम