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नज़्म
सोचता हूँ कि तुझे मिल के मैं जिस सोच में हूँ
पहले उस सोच का मक़्सूम समझ लूँ तो कहूँ
साहिर लुधियानवी
नज़्म
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मोहसिन नक़वी
नज़्म
सो जिस राह पर आज तुम उदास मक़्सूम बैठे हो
इस से तुम्हारे हिस्से की कोई मन-चाही राह तो के नहीं मिलती
अहमद हमेश
नज़्म
गए दिनों की मोहब्बतों को, रक़ाबतों को, सऊबतों को भुला चुका था
हुजूम अपने अज़ल के मक़्सूम के मुताबिक़
बिलाल अहमद
नज़्म
तू परेशाँ न हो गर मुझ से मुख़ातिब है कोई
मैं तुझे प्यार का मक़्सूम बता सकता हूँ