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नज़्म
एक भूली हुई तहज़ीब के पुर्ज़े से बिछे थे हर-सू
मुंजमिद लावे में अकड़े हुए इंसानों के गुच्छे थे वहाँ
गुलज़ार
नज़्म
तो ये तो होता है ये तो होगा
हम अपने जज़्बों को मुंजमिद रायगाँनियों के सुपुर्द कर के
नोशी गिलानी
नज़्म
ये मंज़र मुंजमिद हो कर सफ़र आग़ाज़ करता है
लहू की बर्क़-रफ़्तारी तनाबें खेंच लेती है
अब्बास ताबिश
नज़्म
अब वो इस रस्ते में है सब जिस को राह-ए-मर्ग कहते हैं
मुंजमिद आँखों में अब मंज़र ठहरते ही नहीं
ज़ेहरा निगाह
नज़्म
एक इक नाम हर आवाज़ हर इक चेहरा बर्फ़
मुंजमिद ख़्वाब की टिकसाल का हर सिक्का बर्फ़