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नज़्म
सत्यपाल आनंद
नज़्म
तुम अपनी माम के बेहद मुरादी मिन्नतों वाले
मिरे कुछ भी नहीं कुछ भी नहीं कुछ भी नहीं बाले
जौन एलिया
नज़्म
ज़र दाम-दिरम का भांडा है बंदूक़ सिपर और खांडा है
जब नायक तन का निकल गया जो मुल्कों मुल्कों हांडा है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
मग़रिब के मोहज़्ज़ब मुल्कों से कुछ ख़ाकी-वर्दी-पोश आए
इठलाते हुए मग़रूर आए लहराते हुए मदहोश आए
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ज़फ़र-मंदों के आगे रिज़्क़ की तहसील की ख़ातिर
कभी अपना ही नग़्मा उन का कह कर मुस्कुराना है
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
मुल्कों मुल्कों हम घूमे थे बंजारों की मिस्ल
लेकिन इस की सज-धज सच-मुच दिल-दारों की मिस्ल
अहमद फ़राज़
नज़्म
अब हलक़ में उन के जो खाया अटक कर जाएगा
ग़ैर-मुल्कों में न सरमाया भटक कर जाएगा