आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "مولیٰ"
नज़्म के संबंधित परिणाम "مولیٰ"
नज़्म
ज़िक्र-ए-मौला से लबों पर अब वो नर्मी ही नहीं
भाप सीने से उठे क्या दिल में गर्मी ही नहीं
जोश मलीहाबादी
नज़्म
मेरे मौला तेरा बंदा तिरे इकराम के लाएक़ नहीं लेकिन
मेरा बचपन तिरे इनआ'म का शाएक़ है अभी तक
ख़ालिद अहमद
नज़्म
जो मौला-बख़्श से वो पीटते हैं मुझ को मकतब में
कोई समझाए उन को वक़्त भी बर्बाद होता है
मुश्ताक़ अहमद नूरी
नज़्म
चाँटे न जमाए जाएँगे डंडों से न पीटा जाएगा
उस्ताद के मौला-बख़्श जहाँ दिखला न सकेंगे कुछ कर्तब
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
नज़्म
बजी घंटी जो छुट्टी की तो हँसते गाते हम निकले
किसी मोटे से मौला-बख़्श के सह कर सितम निकले
हिफ़ज़ान अहमद हाशमी
नज़्म
कुछ अगर माली कहे तो क़हक़हे मिल कर लगा
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ