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नज़्म
ग़ुंचा-ए-दिल मर्द का रोज़-ए-अज़ल जब खुल चुका
जिस क़दर तक़दीर में लिक्खा हुआ था मिल चुका
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ये रक़्स-ए-आफ़रीनश है कि शोर-ए-मर्ग है ऐ दिल
हवा कुछ इस तरह पेड़ों से मिल मिल कर गुज़रती है
उबैदुर्रहमान आज़मी
नज़्म
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
ये चिड़ियाँ चहचहाती हैं तो उन को चहचहाने दो
परिंदों को दरख़्तों पर ख़ुशी के गीत गाने दो