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नज़्म
मिट्टी के बुत हरे नारियल चंदन लगा कोई मुखड़ा
वो धारों पर नाव खेता सूखा पंजर माँझी का
फ़हमीदा रियाज़
नज़्म
अहमद हमेश
नज़्म
अगर नहीं हैं नारियल के साए सतह-ए-आब पर तो क्या हुआ
मगर बहुत ही दूर आ चुके हैं साहिलों को छोड़ कर
कमाल अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
नारियल पानी पियो पंखा झलो अख़बार से
क्यों ख़फ़ा होते हो प्यारे बात को समझा करो