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नज़्म
न जाने ऐसे कितने नामवर हिजरत यहाँ से कर चुके प्यारे
यहाँ से इक न इक दिन सब को हिजरत कर के जाना है
महवर सिरसिवी
नज़्म
इक अदीब-ए-नामवर इक अफ़सर-ए-आ'ली-मक़ाम
ज़ात सक्सेना है जिस की राम बाबू जिस का नाम
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
सीना-ए-दहर के नासूर हैं कोहना नासूर
जज़्ब है उन में तिरे और मिरे अज्दाद का ख़ूँ
साहिर लुधियानवी
नज़्म
वो इक अंदोह था तारीख़ का अंदोह-ए-सोज़िंदा
वो नामों का दरख़्त-ए-ज़र्द था और उस की शाख़ों को
जौन एलिया
नज़्म
कहाँ हैं वो सब जिन से जब थी पल-भर की दूरी भी शाक़
कहीं कोई नासूर नहीं गो हाएल है बरसों का फ़िराक़
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
मेरा नामूस-ए-वफ़ा मेरी मोहब्बत का ग़ुरूर
मेरी नब्ज़ों का तरन्नुम मिरे नग़्मों की पुकार
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
ता-अबद आते रहेंगे
अबू-तालिब के बेटे हिफ़्ज़-ए-नामूस-ए-रिसालत की रिवायत के अमीं थे