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नज़्म
आदमी ख़्वाहिशों के अँधेरे नशेबों में सैलाब की तरह बहते हुए
चोर-बाज़ार, सट्टा, जुआरी
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
कोह-ए-हिमाला की ऊँची झीलों से निकल कर आता है
वादियों और नशेबों में तेज़ी से चल कर आता है
मोहम्मद शफ़ीउद्दीन नय्यर
नज़्म
ये क्या कि मेरे हौसलों में रिफ़अतें हैं
और गिरता जा रहा हूँ अपनी फ़ितरत के नशेबों में
आफ़ताब इक़बाल शमीम
नज़्म
कोह-ए-हिमाला की ऊँची झीलों से निकल कर आता है
वादियों और नशेबों में तेज़ी से चल कर आता है
मोहम्मद शफ़ीउद्दीन नय्यर
नज़्म
बताऊँ क्या तुझे ऐ हम-नशीं किस से मोहब्बत है
मैं जिस दुनिया में रहता हूँ वो इस दुनिया की औरत है