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नज़्म
जो मिसाल-ए-शम्अ रौशन महफ़िल-ए-क़ुदरत में है
आसमाँ इक नुक़्ता जिस की वुसअत-ए-फ़ितरत में है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सिमट कर किस लिए नुक़्ता नहीं बनती ज़मीं कह दो
ये फैला आसमाँ उस वक़्त क्यूँ दिल को लुभाता था
मीराजी
नज़्म
वो नुक़्ता जिस पे मैं हूँ मरक़द-ए-शाम-ए-ग़रीबाँ है
मगर इस सम्त कोई आह-ओ-ज़ारी को नहीं आता
शहज़ाद अहमद
नज़्म
वो दिल हूँ इबारत जो है नज़्म-ए-अबदी से
इक ख़ून का नुक़्ता हूँ मैं पुर-मअ'नी-ओ-पुर-जोश
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
मैं एक ज़र्रा बिसात-ए-निज़ाम-ए-शम्सी पर
मैं एक नुक़्ता सर-ए-काएनात-ए-वहम-ओ-शुऊर