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नज़्म
आ कि वाबस्ता हैं उस हुस्न की यादें तुझ से
जिस ने इस दिल को परी-ख़ाना बना रक्खा था
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
कहाँ हो मतवालो आओ बज़्म-ए-वतन में है इम्तिहाँ हमारा
ज़बान की ज़िंदगी से वाबस्ता आज सूद ओ ज़ियाँ हमारा
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
झूम जाते हैं मनाज़िर, रक़्स करते हैं नुजूम
तेरे ही नग़्मे से वाबस्ता नशात-ए-ज़िंदगी
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
نہيں ہے وابستہ زير گردوں کمال شان سکندري سے
تمام ساماں ہے تيرے سينے ميں ، تو بھي آئينہ ساز ہو جا
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
नून मीम राशिद
नज़्म
हिन्दू हों कि मुस्लिम हैं गिरफ़्तार इसी के
वाबस्ता हैं सब जिस से वो ज़ंजीर यही है
अर्श मलसियानी
नज़्म
इसी से नाचार हम को वाबस्ता कर दिया है
हम इस की तहज़ीब की बुलंदी की छिपकिली बन के रह गए हैं
नून मीम राशिद
नज़्म
काम था तुझ को न मुतलक़ हस्ती-ए-नाकाम से
थी नवा वाबस्ता तेरी पर्दा-ए-इलहाम से