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नज़्म
सानेहों से कुछ बढ़ कर वाक़िए भी आते हैं
वक़्त ही के मरहम से ज़ख़्म भर भी जाते हैं
सबीहुद्दीन शोऐबी
नज़्म
मैं ने कल का वाक़िआ' याद किया
कुछ धुंदली सी थी इस वाक़िए की तस्वीर मेरे ज़ेहन पर
उत्कर्ष मुसाफ़िर
नज़्म
अपने क़ातिलों के साथ बंदगी सी करते हैं
क़त्ल के तनाज़ुर में सारे वाक़'ए रख कर 'आशिक़ी सी करते हैं
नीलम भट्टी
नज़्म
कुछ ऐसा है ये मैं जो हूँ ये मैं अपने सिवा हूँ ''मैं''
सो अपने आप में शायद नहीं वाक़े हुआ हूँ मैं
जौन एलिया
नज़्म
अब मैं समझा कि है क्या राज़-ए-ब-दामान-ए-हिजाब
वाक़ई तुम को नदामत है जो ख़ामोश हो तुम