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नज़्म
जिसे हम मुर्दा समझे ज़िंदा तर पाइंदा तर निकला
मह ओ ख़ुर्शीद से ज़र्रे का दिल ताबिंदा तर निकला
हफ़ीज़ जालंधरी
नज़्म
कोई फ़ल्सफ़ा कोई पाइंदा अक़दार नहीं, मेआर नहीं है
इस पर अहल-ए-दानिश विद्वान, फ़लसफ़ी
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
मोहब्बत में जो हो जाता है पाइंदा नहीं मरता!
सदाक़त जिस को कर देती है ताबिंदा नहीं मरता!
अख़्तर शीरानी
नज़्म
जहाँ में गाँधी-ओ-नेहरू के विर्सा-दार हो तुम
ज़मीं पे अम्न-ओ-मुहब्बत के पासदार हो तुम