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नज़्म
खाए जाता है मुझे अब मिरे माज़ी का ख़याल
क्या मिरे जुर्म की पादाश है इस दर्जा मुहाल
वामिक़ जौनपुरी
नज़्म
मेरा वो गुनह क्या है ख़ता क्या है वो मेरी
किस जुर्म की पादाश में मिलती है ये सौग़ात