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नज़्म
मगर ऐ काश देखें वो मिरी पुर-सोज़ रातों को
मैं जब तारों पे नज़रें गाड़ कर आँसू बहाता हूँ
साहिर लुधियानवी
नज़्म
مري اسيري پہ شاخ گل نے يہ کہہ کے صياد کو رلايا
کہ ايسے پرسوز نغمہ خواں کا گراں نہ تھا مجھ پہ آشيانہ