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नज़्म
जो फ़र्क़ समझते हैं अब तक हिन्दी सिंधी पंजाबी में
इन अक़्ल के पूरे लोगों से लड़ने की हिमाक़त कौन करे
अबुल फ़ितरत मीर ज़ैदी
नज़्म
'गाँधी' हो कि 'ग़ालिब' हो इंसाफ़ की नज़रों में
हम दोनों के क़ातिल हैं दोनों के पुजारी हैं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
कोई देखे तो है बारीक फ़ितरत का हिजाब इतना
नुमायाँ हैं फ़रिश्तों के तबस्सुम-हा-ए-पिन्हानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
पैसे का पुजारी दुनियाँ में सच पूछो तो इंसाँ हो न सका
दौलत कभी ईमाँ ला न सकी सरमाया मुसलमाँ हो न सका