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नज़्म
चरवाहियाँ रस्ता भूल गईं पनहारियाँ पनघट छोड़ गईं
कितनी ही कुँवारी अबलाएँ माँ बाप की चौखट छोड़ गईं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जब देखता है वो कहीं बदमस्त पनघट वालियाँ
गालों को जिन के चूमती हैं पतली पतली बालियाँ
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
ज़मीं का हुस्न है खेतों की ताज़गी है ज़बाँ
रहट की लय है तो पनघट की रागनी है ज़बाँ
नाज़िश प्रतापगढ़ी
नज़्म
मिट्टी के सब पनघट अपने मिट्टी की सब सखियाँ
मिट्टी के चमकीले गगरे कौन ये जाने मिट्टी के