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नज़्म
प्रेम की ख़ुशबू चप्पे चप्पे में तुम को फैलाना है
सुन लो मेरी आँख के तारो ये एलान ज़रूरी है
अताउर्रहमान तारिक़
नज़्म
पास बिठा कर कोई अधूरा गीत सुनाना चाहता था
उस के परों को अपने जीवन पर फैलाना चाहता था
ज़ीशान साहिल
नज़्म
बढ़ रही हैं गोद फैलाए हुए रुस्वाइयाँ
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ये बातें झूटी बातें हैं ये लोगों ने फैलाई हैं
तुम 'इंशा'-जी का नाम न लो क्या 'इंशा'-जी सौदाई हैं
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
मुझे इक़रार है उस ने ज़मीं को ऐसे फैलाया
कि जैसे बिस्तर-ए-कम-ख़्वाब हो दीबा-ओ-मख़मल हो
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
जिस ने आफ़ाक़ पे फैलाया है यूँ सेहर का दाम
दामन-ए-वक़्त से पैवस्त है यूँ दामन-ए-शाम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
आज से मेरे फ़न का मक़्सद ज़ंजीरें पिघलाना है
आज से मैं शबनम के बदले अंगारे बरसाऊँगा
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ज़माना मुश्किलों के जाल फैलाए तो फैलाए
क़दम बढ़ते रहें बे-दर्द दुनिया लाख बहकाए