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नज़्म
मुझ को क्या इल्म था इख़्लास किसे कहते हैं
क्या है दरिया का सुकूँ प्यास किसे कहते हैं
बालमोहन पांडेय
नज़्म
जब ख़ुदा का डर नहीं तो फ़िक्र-ए-उक़्बा क्यूँ रहे
फ़ारिग़-उल-बाली में कोई भूका प्यासा क्यूँ रहे
मुख़तसर आज़मी
नज़्म
मैं ने खींची है ये मय मैं ने ही ढाले हैं ये जाम
पर अज़ल से जो मैं प्यासा था तो प्यासा ही रहा
राही मासूम रज़ा
नज़्म
सोती रात का जादू चलता खिंचते हुए दामन की ओट
चाँद का जौबन छलका पड़ता सागर प्यासा होता था
शहाब जाफ़री
नज़्म
जिस वक़्त महार उठाई थी मेरा ऊँट भी प्यासा था
मश्कीज़े में ख़ून भरा था आँख में सहरा फैला था
अली अकबर नातिक़
नज़्म
इतना प्यासा था मैं उस दिन जितना चाह का मारा हो
चाह का मारा वो भी ऐसा जिस ने चाह न देखी हो