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नज़्म
बल्ली-मारां के मोहल्ले की वो पेचीदा दलीलों की सी गलियाँ
सामने टाल की नुक्कड़ पे बटेरों के क़सीदे
गुलज़ार
नज़्म
मगर ये सब साल नूर के साल तो नहीं तीरगी के भी साल ये नहीं हैं
ये साल तो फ़ासले की पेचीदा सिलवटें हैं
मीराजी
नज़्म
ज़रूरत है कि हम में रौशनी हो इल्म की पैदा
नज़र आए हमें भी ताकि अस्ल-ए-हालत-ए-दुनिया
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
ग़र्क़ होने पर था जब बेड़ा हमारी क़ौम का
गोशा-ए-उज़्लत में 'तुलसी' नाख़ुदा पैदा हुआ
जगत मोहन लाल रवाँ
नज़्म
जिन की पेचीदा तर्सील ख़मीदा जुम्बिश
सौत ओ बयाँ को मअनी की सौ जिहतें बख़्शा करती थी