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नज़्म
तड़प सेहन-ए-चमन में आशियाँ में शाख़-सारों में
जुदा पारे से हो सकती नहीं तक़दीर-ए-सीमाबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
चमक तारे से माँगी चाँद से दाग़-ए-जिगर माँगा
उड़ाई तीरगी थोड़ी सी शब की ज़ुल्फ़-ए-बरहम से
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सौ ज़ख़्म भी खा कर मैदाँ से हटते नहीं जुरअत-मंद कभी
वो वक़्त कभी तो आएगा जब दिल के चमन लहराएँगे
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
मोहब्बत जब चमक उठती थी उस की चश्म-ए-ख़ंदाँ में
ख़मिस्तान-ए-फ़लक से नूर की सहबा छलकती थी