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नज़्म
जान कर भी क्या कर लेती वो भी एक वैश्या थी
काम उन का लोगों को सुख देना था चिंता नहीं
अंकिता गर्ग
नज़्म
बशर नवाज़
नज़्म
जमीलुर्रहमान
नज़्म
आँखों को ठंडक देती हैं मन की चिंता हर लेती हैं
आकाश पे जब छा जाती हैं घनघोर घटाएँ भारत की