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नज़्म
वर्ना मेरी आहट तो आँगन से दालान में आख़िर यूँ क्यूँ जाती
इक चप्पल है पाँव में इक आँगन में पड़ी है
राही मासूम रज़ा
नज़्म
हाथ में लाठी पाँव में चप्पल तन पर एक लंगोटी
इस भेस में बापू ने सर की अज़्मत की चोटी
अताउर्रहमान तारिक़
नज़्म
उस ने अम्माँ को ख़ुद-ए'तिमादी से देखा
कि अब उस के अपने दुपट्टे क़मीस और शलवार चप्पल के जोड़े
हारिस ख़लीक़
नज़्म
रात हँस हँस कर ये कहती है कि मय-ख़ाने में चल
फिर किसी शहनाज़-ए-लाला-रुख़ के काशाने में चल
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
नम-ए-लब को तरसती हैं सो प्यास इन की न पूछो तुम
ये इक दो जुरओं की इक चुह्ल है और चुह्ल में क्या है