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नज़्म
इज़्ज़त वालों की ज़िल्लत का सब से बड़ा बाज़ार है ये
चुकते हैं ग़ैरत के सौदे बिकते हैं ईमान यहाँ
क़तील शिफ़ाई
नज़्म
मुझ से पहले कितने शा'इर आए और आ कर चले गए
कुछ आहें भर कर लौट गए कुछ नग़्मे गा कर चले गए
साहिर लुधियानवी
नज़्म
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
गर तो है लक्खी बंजारा और खेप भी तेरी भारी है