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नज़्म
आस का दीप जला कर दिल में छोड़ गया मुझ को हरजाई
वो तो एक छलावा था बस मैं बद-क़िस्मत बूझ न पाई
सदा अम्बालवी
नज़्म
हों जो अल्फ़ाज़ के हाथों में हैं संग-ए-दुश्नाम
तंज़ छलकाए तो छलकाया करे ज़हर के जाम