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नज़्म
ख़ुदा के फ़ज़्ल से अहल-ए-हुनर हैं अहल-ए-फ़न सब हैं
मगर डेढ़ ईंट की मस्जिद बनाने में मगन सब हैं
सय्यदा फ़रहत
नज़्म
किया बूटें डेढ़ पात के क्या झाड़ क्या पहाड़
जो ख़ाक से बना है वो आख़िर को ख़ाक है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
रात के शायद डेढ़ बजे हैं बटला हाउस का चौक खुला है
रात को जॉब से आने वाले रात में जॉब को जाने वाले