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नज़्म
जिस से निकलना मुमकिन नहीं
मैं समझता था कि मैं ने एक बहुत बड़ा कार-नामा अंजाम दिया है
रहमत यूसुफ़ ज़ई
नज़्म
वो सूद-ए-हाल से यकसर ज़ियाँ-काराना गुज़रा है
तलब थी ख़ून की क़य की उसे और बे-निहायत थी
जौन एलिया
नज़्म
अभी तो काएनात औहाम का इक कार-ख़ाना है
अभी धोका हक़ीक़त है हक़ीक़त इक फ़साना है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
हिकायात-ए-शीरीन-ओ-तल्ख़ उन की, उन के दरख़्शाँ जराएम
जो सफ़्हात-ए-तारीख़ पर कारनामे हैं, उन के अवामिर
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
गुज़रगाह-ए-शाम-ओ-सहर पर कहीं एक दिन मैं उगा था
नबातात की तरह जीता हूँ इस कारगाह-ए-जहाँ में
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
कार-फ़रमा फिर मिरा ज़ौक़-ए-ग़ज़ल-ख़्वानी है आज
फिर नफ़स का साज़-ए-गर्म-ए-शो'ला-अफ़्शानी है आज
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
सुनते हैं कुछ अजब है दुनिया का कार-ख़ाना
लिखना है अब न पढ़ना बस छुट्टियाँ मनाना