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नज़्म
परे है चर्ख़-ए-नीली-फ़ाम से मंज़िल मुसलमाँ की
सितारे जिस की गर्द-ए-राह हों वो कारवाँ तो है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मोहब्बत ही वो मंज़िल है कि मंज़िल भी है सहरा भी
जरस भी कारवाँ भी राहबर भी राहज़न भी है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
پھول بے پروا ہيں ، تو گرم نوا ہو يا نہ ہو
کارواں بے حس ہے ، آواز درا ہو يا نہ ہو