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नज़्म
उन में काहिल भी हैं ग़ाफ़िल भी हैं हुश्यार भी हैं
सैकड़ों हैं कि तिरे नाम से बे-ज़ार भी हैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
रबूद आँ तुर्क शीराज़ी दिल-ए-तबरेज़-ओ-काबुल रा
सबा करती है बू-ए-गुल से अपना हम-सफ़र पैदा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
लुत्फ़-ए-गोयाई में तेरी हम-सरी मुमकिन नहीं
हो तख़य्युल का न जब तक फ़िक्र-ए-कामिल हम-नशीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ऐ इश्क़-ए-अज़ल-गीर ओ अबद-ताब, मेरे भी हैं कुछ ख़्वाब
वो ख़्वाब हैं आज़ादी-ए-कामिल के नए ख़्वाब
नून मीम राशिद
नज़्म
धुआँ सा अब नज़र आता है मुझ को माह-ए-कामिल में
तुम्हारे साथ जितने दिन गुज़ारे याद आते हैं