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नज़्म
चरवाहियाँ रस्ता भूल गईं पनहारियाँ पनघट छोड़ गईं
कितनी ही कुँवारी अबलाएँ माँ बाप की चौखट छोड़ गईं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
फूलों से महक शाख़ों से लचक और मंडवों से ठंडा साया
जंगल की कुँवारी कलियों ने दे डाला अपना सरमाया
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
और वो कुँवारी बेटी का वो जहेज़ भी नहीं था
जो ख़ुशी के मज़बूत ताले की इकलौती कुंजी बन जाता
तनवीर अंजुम
नज़्म
सुहागन है तो उस की माँग में झूमर चमकता है
कुँवारी है तो उस के जिस्म से ख़ुशबू निकलती है