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नज़्म
नानी को सदमा होता है क्यों बर्गर हम खाते हैं
कितना ख़ुश हो जाती हैं वो जब गाजर हम खाते हैं
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
नज़्म
गाजर शलजम और मूली ने कहा कि चौपट है बैंगन
दूसरों के बारे में यूँ तो सब कुछ कहना है आसान
शौकत परदेसी
नज़्म
सरिश्क-ए-चश्म-ए-मुस्लिम में है नैसाँ का असर पैदा
ख़लीलुल्लाह के दरिया में होंगे फिर गुहर पैदा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हबीब जालिब
नज़्म
तुर्क-ए-ख़र्गाही हो या आराबी-ए-वाला-गुहर
नस्ल अगर मुस्लिम की मज़हब पर मुक़द्दम हो गई
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सरापा रंग-ओ-बू है पैकर-ए-हुस्न-ओ-लताफ़त है
बहिश्त-ए-गोश होती हैं गुहर-अफ़्शानियाँ उस की