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नज़्म
ये इंसानी बला ख़ुद ख़ून-ए-इंसानी की गाहक है
वबा से बढ़ के मोहलिक मौत से बढ़ कर भयानक है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
बहम दस्त-ओ-गरेबाँ सेल्ज़-मैन और उन के गाहक हैं
वो ग़ुल बरपा है जैसे नग़्मा-ज़न जौहड़ में मेंडक हैं
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
बकरे के साथ होता है गाहक का इंतिक़ाल
गर क़ीमतें यही हैं तो जीने का क्या सवाल
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
बिलाल असवद
नज़्म
उन की हालत देख के दिल से निकलती है अब हाए
नन्हे हाथों से गाहक को जब वो पिलाएँ चाय