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नज़्म
ने मजाल-ए-शिकवा है ने ताक़त-ए-गुफ़्तार है
ज़िंदगानी क्या है इक तोक़-ए-गुलू-अफ़्शार है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ज़बाँ-बुरीदा हूँ ज़ख़्म-ए-गुलू से हर्फ़ करो
शिकस्ता-पा हूँ मलाल-ए-सफ़र की बात सुनो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ميں نوائے سوختہ در گلو ، تو پريدہ رنگ، رميدہ بو
ميں حکايت غم آرزو ، تو حديث ماتم دلبري
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
गुलू में तेरी उल्फ़त के तराने सूख जाएँगे
मबादा याद-हा-ए-अहद-ए-माज़ी महव हो जाएँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
نہيں يہ شان خودداري ، چمن سے توڑ کر تجھ کو
کوئي دستار ميں رکھ لے ، کوئي زيب گلو کر لے