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नज़्म
निशान-ए-बर्ग-ए-गुल तक भी न छोड़ उस बाग़ में गुलचीं
तिरी क़िस्मत से रज़्म-आराइयाँ हैं बाग़बानों में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
यूँ ज़बान-ए-बर्ग से गोया है उस की ख़ामुशी
दस्त-ए-गुल-चीं की झटक मैं ने नहीं देखी कभी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
چمن ميں غنچہ گل سے يہ کہہ کر اڑ گئي شبنم
مذاق جور گلچيں ہو تو پيدا رنگ و بو کر لے
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
نہ ہو قناعت شعار گلچيں! اسي سے قائم ہے شان تيري
وفور گل ہے اگر چمن ميں تو اور دامن دراز ہو جا
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आह ये दस्त-ए-जफ़ा जो ऐ गुल-ए-रंगीं नहीं
किस तरह तुझ को ये समझाऊँ कि मैं गुलचीं नहीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
क्या कहूँ रंग-ए-जवानी में जो इस राग के थे
बाग़बाँ हो गए गुलचीं जो मेरे बाग़ के थे
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
शहीद-ए-जौर-ए-गुलचीं हैं असीर-ए-ख़स्ता-तन हम हैं
हमारा जुर्म इतना है हवा-ख़्वाह-ए-चमन हम हैं
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
न गुलचीं हो न सय्याद-ए-सितम-राँ की सितम-रानी
न गुल की चाक-दामानी न ग़ुंचों की परेशानी