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नज़्म
मगर वो दरिंदे तो गिनती के हैं
अनगिनत मर्द वो हैं जिन्हों ने तुम्हें शान-ओ-तकरीम बख़्शी
रहमान फ़ारिस
नज़्म
अली अकबर नातिक़
नज़्म
मैं नहीं जानता
ऐसे दिन रात को दिल नहीं मानता, पोर पर जिन की गिनती ठहरती नहीं