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नज़्म
जब चलते चलते रस्ते में ये गौन तिरी रह जावेगी
इक बधिया तेरी मिट्टी पर फिर घास न चरने आवेगी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
बादशाहों की भी किश्त-ए-उम्र का हासिल है गोर
जादा-ए-अज़्मत की गोया आख़िरी मंज़िल है गोर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मैं हूँ ऐसा पात हवा में पेड़ से जो टूटे और सोचे
धरती मेरी गोर है या घर ये नीला आकाश जो सर पर
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
सुला लेगी हमें ख़ाक-ए-वतन आग़ोश में अपनी
न फ़िक्र-ए-गोर है हम को न मुहताज-ए-कफ़न हम हैं
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
क़स्र-ए-शाही में कि मुमकिन नहीं ग़ैरों का गुज़र
एक दिन नूर-जहाँ बाम पे थी जल्वा-फ़िगन
शिबली नोमानी
नज़्म
विदा-ए-रोज़-ए-रौशन है गजर शाम-ए-ग़रीबाँ का
चरा-गाहों से पलटे क़ाफ़िले वो बे-ज़बानों के
नज़्म तबातबाई
नज़्म
इक हसीं गोर-ए-ग़रीबाँ पे हुआ यूँ गोया
ये भी कम्बख़्त कभी हज़रत-ए-इंसाँ होंगे