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नज़्म
ग़रज़ जो तीन-सौ-पैंसठ दिनों के गोश्वारे हैं
हमारे तीन-सौ दिन हैं फ़क़त पैंसठ तुम्हारे हैं
खालिद इरफ़ान
नज़्म
थी नज़र हैराँ कि ये दरिया है या तस्वीर-ए-आब
जैसे गहवारे में सो जाता है तिफ़्ल-ए-शीर-ख़्वार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आमिर उस्मानी
नज़्म
हुआ ज़माना कि 'सिद्धार्थ' के थे गहवारे
इन्ही नज़ारों में बचपन कटा था 'विक्रम' का
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
जो वक़्त कि आने वाला है दिल उस की आहट लेता है
तूफ़ाँ की लहरें जाग उठीं सो कर अपने गहवारे से
जमील मज़हरी
नज़्म
भाषा की तकरार नहीं मज़हब की दीवार नहीं
इन की नज़रों में इक हैं मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
तरक़्क़ी, इल्म के गहवारे, रूह का मदफ़न
ख़ुदा का क़त्ल, अयाँ ज़ेर-ए-नाफ़ ज़ोहरा जमाल
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
और अम्न के गहवारे का नाम दिया था
जहाँ हमारी आज़माइश के लिए शजर-ए-मम्नूआ के साथ साथ