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नज़्म
गगन की जगमगाहट पड़ गई है आज मद्धम क्यूँ
मुंडेरों और छज्जों पर उतर आए हैं तारे क्या
नज़ीर बनारसी
नज़्म
ज़र्रा ज़र्रा इस दुनिया का आज गगन का तारा है
ये धरती ये जीवन-सागर ये संसार हमारा है
मसूद अख़्तर जमाल
नज़्म
रूप अनूप की नाव पे बैठा किरनों की पतवार लिए
नील गगन में तैर रहा है सुंदर छैल-छबीला चाँद