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नज़्म
घटा की घन-गरज से क़ल्ब-ए-गीती काँप जाता है
मगर मैं अपनी मंज़िल की तरफ़ बढ़ता ही जाता हूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
जिस को अमरीकी सुअर खाते थे वो खाएगा कौन
साथ में गंदुम के मिस्टर घुन को पिसवाएगा कौन
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
मुझे घिन आती है जैकेट में क़ैद उस मौत से
जिस को बच्चे और बूढे का फ़र्क़ नज़र नहीं आता