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नज़्म
मज़हब-ए-इश्क़ में जाएज़ है यक़ीनन जाएज़
चूम लूँ मैं लब-ए-लालीं भी अगर आज की रात
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
यक़ीनन होती है मरने से बद-तर ज़िंदगी उस की
जिसे मुल्क-ओ-वतन के वास्ते मरना नहीं आता
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
मैं वापस आऊँ ऑफ़िस से मुझे देखे तो उस को चैन आता है
यक़ीनन ख़ुद से बढ़ कर मुझ को पगली प्यार करती है
सुलैमान जाज़िब
नज़्म
वाँ इशारे हैं बहक जाना ही ऐश-ए-होश है
होश में रहना यक़ीनन सख़्त नादानी है आज
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
बेवफ़ाई जिस ने की तुझ से यक़ीनन जो भी हो
ना-मुकम्मल उस का ईमाँ कुफ़्र उस के दिल में है
अख़्तर हुसैन शाफ़ी
नज़्म
ख़ुदा फ़नकार है वो भी यक़ीनन चाहता होगा
कि देखे उस की सनअत से किसे कितनी मोहब्बत है