aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "یوں_ہی"
बर्फ़ यूँ ही गिरे
चलो यूँ ही सहीतुम सब दरीचे बंद कर दो
यूँहीकुछ तलाश करते हुए अचानक
यूँही गुम-सुमखड़ी थी मैं
ज़ीस्त यूँही न रहेगी मग़्मूमज़िंदगानी को बदलना होगा
चलते चलते यूँ ही ठहर जानाऔर उसे सोचना घड़ी भर को
रोज़ यूँ ही होता हैसोच के दरीचों से
मैं तुम्हें एक ख़त लिखूँगामगर उसे डाक में नहीं डालूँगा
बैठे बैठे यूँही क़लम ले करमैं ने काग़ज़ के एक कोने पर
इक दिन पार्क की बेंच पे यूँहीक्या जाने क्या सोच के तुम ने
मुसाफ़िर यूँही गीत गाए चला जासर-ए-रहगुज़र कुछ सुनाए चला जा
और चली आई है बस यूँही मिरा हाथ पकड़ करघर की हर चीज़ सँभाले हुए अपनाए हुए तू
यूँही कभी कभीसंगलाख़ चट्टानों से गुज़रते हुए
खट... खट... कौन? सबीहा! कैसे? यूँही, कोई काम नहींपिछली रात.. भयानक गैरज.. क्या कुछ हो अंजाम.. नहीं
यूँ ही ईमेल से आ जाते हैं सादा से ख़ुतूतसादगी इतनी कि ख़ुशबू न वे रंग लिए
बस यूँ ही कोई बात करें
इक दिन यूँही चलते चलते दिल की धड़कन रुक जाएगीनब्ज़ की जुम्बिश थम जाएगी
कट गए अपनी जवानी के मह-ओ-साल यूँही
शाम-ए-तन्हा यूँही चुप-चाप अँधेरे ले करघर के अंदर ही चली आई है
चलने दो यूँही क़ाफ़िला-ए-ग़म को ज़रा देरतुम उस की रवानी में रुकावट तो न डालो
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