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नज़्म
कल कोई मुझ को याद करे क्यूँ कोई मुझ को याद करे
मसरूफ़ ज़माना मेरे लिए क्यूँ वक़्त अपना बर्बाद करे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मिरे घर का वही सरनाम-तर है जो भी बिस्मिल है
गुज़श्त-ए-वक़्त से पैमान है अपना अजब सा कुछ
जौन एलिया
नज़्म
रबूद आँ तुर्क शीराज़ी दिल-ए-तबरेज़-ओ-काबुल रा
सबा करती है बू-ए-गुल से अपना हम-सफ़र पैदा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ऐ मेरे वतन के फ़नकारो ज़ुल्मत पे न अपना फ़न वारो
ये महल-सराओं के बासी क़ातिल हैं सभी अपने यारो