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नज़्म
फ़र्ज़ करो हम अहल-ए-वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों
फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूटी हों अफ़्साने हों
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
ये बात अजीब सुनाते हो वो दुनिया से बे-आस हुए
इक नाम सुना और ग़श खाया इक ज़िक्र पे आप उदास हुए
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
जल्वा-ए-हक़ का वो इक बे-लौस सरमाया था तू
अह्ल-ए-दुनिया के लिए पैग़ाम-ए-हक़ लाया था तू
सुदर्शन कुमार वुग्गल
नज़्म
न अह्ल-ए-दुनिया की सम्त देखो जुदा जुदा है मफ़ाद सब का
अगरचे कोशिश करोगे दिल से बनेगा फ़िरदौस आशियाना
जमाल भारती
नज़्म
गुल से अपनी निस्बत-ए-देरीना की खा कर क़सम
अहल-ए-दिल को इश्क़ के अंदाज़ समझाने लगीं