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नज़्म
दिल तिरा ज़ख़्मों से बज़्म-ए-आशिक़ी में चूर है
जिस सुख़न को देखिए रिसता हुआ नासूर है
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
सवाद-ए-आग़ाज़-ए-ख़ुश्क-साली में क्यूँ वरक़ भीगने लगा है
धुआँ धुआँ शाम के अलाव में कोई जंगल जले
अख़्तर हुसैन जाफ़री
नज़्म
क्या अजब आग़ाज़-ए-हस्ती, क्या अजब आग़ाज़-ए-कार
जैसे वो ईसार-पेशा मर्द दाना-ओ-ग़मीं
मोहम्मद इज़हारुल हक़
नज़्म
ऐ कि तेरी ख़िदमतें सरमाया-दार-ए-इल्म हैं
तेरा मक़्सद ज़ीस्त का आग़ाज़-ए-ख़ुश-अंजाम है