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नज़्म
वो शय दे जिस से नींद आ जाए अक़्ल-ए-फ़ित्ना-परवर को
कि दिल आज़ुर्दा-ए-तमईज़-ए-लुत्फ़-ए-जौर है साक़ी
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
बलराज कोमल
नज़्म
तज़्किरा देहली-ए-मरहूम का ऐ दोस्त न छेड़
न सुना जाएगा हम से ये फ़साना हरगिज़
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
दहकते ज़र्द टीलों के दिलों की ख़ुनकियाँ बख़्शीं
ढला आख़िर ये कैसे मेरे आज़ुर्दा तबस्सुम में
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
नज़्म
जिन को दुनिया में किसी से भी सरोकार न था
अहल-ओ-ना-अहल से कुछ ख़ल्त उन्हें ज़िन्हार न था
मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दा
नज़्म
तज़्किरा देहली-ए-मरहूम का ऐ दोस्त न छेड़
न सुना जाएगा हम से ये फ़साना हरगिज़