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नज़्म
आमद-ए-सुब्ह के, महताब के, सय्यारों के गीत
तुझ से मैं हुस्न-ओ-मोहब्बत की हिकायात कहूँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
क्या तुझे भी इंतिज़ार-ए-आमद-ए-महबूब है
क्यों परेशाँ इस क़दर है क्या तुझे मतलूब है
साक़िब कानपुरी
नज़्म
ख़म जबीं होती है उस की नक़्श-ए-पा-ए-दोस्त पर
और झुक जाते हैं उस के पाँव पर दोनों जहाँ