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नज़्म
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
पास था अपने क़ौल का जिस को तू ने कुछ उस का पास किया
आमद-ओ-रफ़्त-ए-देरीना का भूल के भी एहसास किया
अली मंज़ूर हैदराबादी
नज़्म
गो-मगो की कैफ़ियत में था अभी आनंद बोला
पीर-ओ-मुर्शिद सोना चाँदी तो फ़क़त माया है इस से
सत्यपाल आनंद
नज़्म
छे अरब इंसान ही नहीं ज़मीन की सारी मख़्लूक़ सैराब-ओ-शाद-काम हो
ऐ रब्ब-उल-इज़्ज़त
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
यकसाँ नज़दीक-ओ-दूर पे था बारान-ए-फ़ैज़-ए-आम तिरा
हर दश्त-ओ-चमन हर कोह-ओ-दमन में गूँजा है पैग़ाम तिरा